मां कात्यायनी


Maa Katyayani

|| या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। माँ कात्यायनी माँ दुर्गा का छठा स्वरूप हैं| नवरात्र के छठे दिन आदिशक्ति मां दुर्गा की षष्ठम रूप और असुरों तथा दुष्टों का नाश करनेवाली भगवती कात्यायनी की पूजा की जाती है. मार्कण्डये पुराण के अनुसार जब राक्षसराज महिषासुर का अत्याचार बढ़ गया, तब देवताओं के कार्य को सिद्ध करने के लिए देवी मां ने महर्षि कात्यान के तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया. शास्त्रों के अनुसार देवी ने कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ गया। नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है। दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है। चार भुजा धारी माँ कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिये हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए। मान्यता है कि यदि कोई श्रद्धा भाव से नवरात्र के छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा आराधना करता है तो उसे आज्ञा चक्र की प्राप्ति होती है|



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