करवाचौथ


Karwachauth

यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपने अखंड सौभाग्य (सुहाग), पति के स्वस्थ एवं दीर्घायु होने की कामना के लिए किया जाता है। जो सुहागिन स्त्री प्रातःकाल से ही निर्जला व्रत रहकर संध्याकाल में इस कथा को श्रवण करती है, रात्रि में चंद्रमा को अघ्र्य देकर भोजन ग्रहण करती है, उसको शास्त्रानुसार पुत्र, धन-धान्य, सौभाग्य एवं अतुलयश की प्राप्ति होती है।

विधि: यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। इसे करने का अधिकार केवल स्त्रियों को ही है, क्योंकि स्त्रियों को ही इसकी फलश्रुति मिलती है। व्रत रखने वाली स्त्री प्रातःकाल नित्यकर्मों से निर्वत्त होकर, स्नान एवं संध्या आदि करके, आचमन के बाद संकल्प लेकर यह कहे कि मैं अपने सौभाग्य एवं पुत्र-पौत्रादि तथा निश्चल संपति की प्राप्ति के लिए करवा चैथ के व्रत को करूंगी। इस व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय और गौरा का पूजन करने का विधान है। चंद्रमा, शिव, पार्वती स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की पूजा षोडशोपचार विधि से विधिवत करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री; जैसे- सिंदूर, चूड़ियां, शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर किसी श्रेष्ठ सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छुकर उन्हें भेंट कर देनी चाहिए। सायं वेला पर पुरोहित से अवश्य कथा सुनें, दान अवश्य दें। तत्पश्चात् राात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय हो जाए तब चंद्रमा को छलनी से देखकर अघ्र्य दें, आरती उतारें और अपने पति का दर्शन करते हुए पूजा करें। इससे पति की उम्र लंबी होती है। कथा: एक बार द्रौपदी ने अपने कष्टों के निवारण के लिए भगवान् श्रीकृष्ण से कोई उपाय पूछा, तो उन्होंने एक कथा सुनाई: किसी समय इंद्रप्रस्थ में वेद शर्मा नामक एक विद्वान् ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी लीलावती से उसके परम तेजस्वी सात पुत्र और एक सुलक्षणा वीरावती नामक पुत्री पैदा हुई। वीरावती के युवा होने पर उसका विवाह एक उत्तम बाह्मण से कर दिया गया। जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई, तो वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ बड़े प्रेम से यह व्रत शुरू किया। लेकिन भूख-प्यास से पीड़ित होकर वह चंद्रोदय के पूर्व ही बेहोश हो गई। बहन को बेहोश देखकर सातों भाई व्याकुल हो गए और इसका उपाय खोजने लगे। उन्होंने अपनी लाडली बहन के लिए पेड़ के पीछे से जलती मशाल का उजाला दिखाकर बहन को होश में लाकर चंद्रोदय निकलने की सूचना दी, तो उसने विधिपूर्वक अघ्र्य देकर भोजन कर लिया। ऐसा करने से उसके पति की मृत्यु हो गई। अपने पति के मृत्यु से वीरावती व्याकुल हो उठी। उसने अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसी रात्रि में इंद्राणी पृथ्वी पर विचरण करने को आई। ब्राह्मण-पुत्री ने उससे अपने दुख का कारण पूछा, तो इंद्राणी ने बताया-‘‘हे वीरावती! तुमने अपने पिता के घर पर करक चतुर्थी कर व्रत किया था, पर वास्तविक, चंद्रोदय के होने से पहले ही अघ्र्य देकर भोजन कर लिया, इसीलिए तुम्हारा पति मृत्यु को प्राप्त हो गया। अब उसे पुनर्जीवित करने के लिए विधिपूर्वक उसी करक चतुर्थी का व्रत करो। मैं उस व्रत के ही पुण्य प्रभाव से तुम्हारे पति को जीवित करूंगी।’’

वीरावती ने बारह मास की चैथ सहित करवा चैथ का पूर्ण विधि-विधानानुसार किया, तो इंद्राणी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार प्रसन्न होकर अमृत जल उसके पति के मृत शरीर पर छिड़क दिया। ऐसा करते ही उसका पति जीवित हो उठा। घर आकर वीरावती अपने पति के साथ वैवाहिक सुख भोगने लगी। समय के साथ उसे पुत्र, धन, धान्य और पति की दीर्घायु का लाभ मिला।




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