आरोग्य, दीपक व धन उपासना का दिवस

दीपावली


Deepawali

भारतीय समाज में दीपावली का दिन विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है। विजय यह बुराई पर अच्छाई की असल्य पर सत्य की विजय है।

इस दिन श्री राम चन्द्र जी अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण सहित जंगलों में अपने पिता की आज्ञानुसार चौदह वर्ष परे करके व श्रीलंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त कर सकुशल अयोध्या में लौटे थे ।

हिन्दुस्तान में 'राम' शब्द केवल शब्द मात्र नहीं है। यह एक शक्ति का नाम है। जिस नाम को लेकर महात्मा गांधी ने देश को

आजाद करवाया । हिन्दुओं की जिन्दगी में घुला-मिला मन के अन्दर बाहर ओत-प्रोत चेतन-अचेतन अवस्था में, शाँत हवा में गूंजता-यह वह 'राम' नाम है जो बुरे से बुरे व्यक्ति का जीवन बदल कर रख दे, बच्चे के पैदा होने पर जीभ पर शहद द्वारा राम लिखा जाता है। जब लोग एक दूसरे का अभिवादन करते है तो 'जय श्री राम' कह कर कानों को हाथ लगाते हैं ताकि बुरा सुनने के पाप से बच सकें। राम राम कह कर मछलियों को आटे की गोलियां डाली जाती हैं । जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो अन्तिम संस्कार हेतू श्मशान ले जाते हुए सभी लोग बोलते जाते है "राम नाम सत्य है।" राम का अर्थ ही है "रम जाना" जो रोम रोम में रम जाये। श्री राम प्रेम, मर्यादाशीलता, स्थिरता, धैर्य, दूरदर्शिता के शिखर तक पहुँच गये थे। दलित शब्द आज के भारतीय माहौल की देन नहीं है। वर्ण तो श्री राम से भी पहले से चले आ रहे हैं। जब समाज को चार वर्णों में बांटा गया था, लेकिन श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर खाकर मनुवाद की उदारता का उदाहरण पेश किया था । आज के भारतीय परिवेश में मनुवाद के खिलाफ बहुत कुछ बोला जा रहा है । लेकिन मनु के वंशज श्रीराम जैसा वे स्वयं कुछ करके तो दिखायें। तब पता चलेगा कि मनुवाद क्या था? श्रीराम जैसा हितैषी श्रीराम के पश्चात कोई भी नहीं हुआ। उन्होंने दी एक जीवन शैली-पारिवारिक जीवन शैली, व्यवहारिक जीवन शैली ।

प्रतिवर्ष दशहरे से पूर्व रामलीलाओं का मंचन होता है । तरह-तरह से नाटक दिखलाया जाता है । दर्शकों को बांधे रखने के लिए नाच गाने के साथ-साथ जौकर भी अपने करतब दिखलाकर मनोरंजन करते हैं। रामलीला के हिस्से में आता है कामुक शूर्पनखा की नाक कटना-कुछ बुद्धिजीवी कहते मिलेंगे-शूर्पनखा के साथ लक्ष्मण ने गलत काम किया था तभी तो कहते हैं उसकी नाक कट गई। कोई कहेगा-नहीं उसका अंग भंग हुआ था | छूरी के साथ उसकी नाक काट दी गई थी। लेकिन श्रीलंका के महाराजा रावण की बहन राजकुमारी शूर्पनखा द्वारा किये गये विवाह आवेदन को लक्षमण द्वारा प्रेमपूर्वक मनाही भी क्या नाक कटने के समान नहीं है। आखिरकार श्री लक्ष्मण भी तो एक राजकुमार थे। वे विवाह रचाने नहीं वनों में बनवास काटने अर्थात सजा काटने आये थे। यह भी तो सम्भव हैं कि राजकुमारी शूर्पनखा द्वारा जंगल में उनके साथ रहने से मना कर दिया गया हो? खैर-हम बात कर रहे हैं रामलीला की, देखते हैं-रावण का अट्टहास, हल की फाल से धरती से निकलती सीता, रावण का दरबार, तो कभी जनक का दरबार, कभी युद्ध तो कभी नाच-गाना कभी राम के आदर्श को दिखाया जाता है, मंचन किया जाता है, परन्तु उनके आदर्श को अपनाते कितने हैं,

दीपावली पर्व को हम देवी लक्ष्मी की आराधना का दिन भी मानते हैं । माँ देवी लक्ष्मी को सौंदर्य और वर्चस्व के रूप में देखा गया है। लक्ष्मी के बिना तो राजा भी अपना राज्य नहीं चला सकता। केवल हम हिन्दू ही देवी को सौंदर्य रूप में देखते हैं, ऐसा नहीं है। रोम की सभ्यता में भी वीनस को सौंदर्य की देवी के रूप में ही देखा जाता है ।

आरोग्य, दीपक व धन उपासना का दिवस

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से पांच दिवसीय लक्ष्मी जी का पर्व प्रारम्भ होता है । ये धनत्रयोदशी, चतुर्दशी, दीपावली कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा व भैया दूज। धनत्रयोदशी से दीप पूजन, लक्ष्मी पूजन, कुबेर व यम पूजन कार्यक्रम प्रारम्भ हो जाते हैं । यद्यपि हिन्दू धर्म में आध्यात्मिक उपलब्धि को पाना ही सर्वोच्च लक्ष्य निर्धारित किया गया है, लेकिन संसार में जीने के लिए धन अति आवश्यक वस्तु बन गई है।

धनत्रयोदशी वाले दिन ही गृहस्थी लोग नई वस्तु खरीदते हैं । अपनी हैसियत के अनुसार ही प्रत्येक व्यक्ति सोना चांदी से लेकर रसोई में काम आने वाले बर्तन खरीदता है । धनत्रयोदशी के दिन यमराज महाराज की पूजा भी की जाती है उनके सम्मान में घर के दरवाजे पर उनके नाम का दीपक भी जलाया जाता है। इसी दिन दीपक दान में दिये जाते हैं। आयुर्वेद के देवता भगवान धनवंतरि का जन्मोत्सव भी त्रयोदशी वाले दिन ही मनाया जाता है । सभी वैद्य अर्थात आयुर्वेदिक चिकित्सक इस दिन को विशेष रूप से मानते हैं । इसलिए इस दिन को आरोग्य दिवस भी कहा गया है ।

लक्ष्मी जी की पूजा

लक्ष्मी जी चंचल होती हैं। लक्ष्मी जी रूप, वैभव, समृद्धि व ऐश्वर्य की देवी हैं। अगर ये चंचल न हों तो इनकी पूजा कौन करेगा। वैसे भी लक्ष्मी जी अगर किसी एक के पास जमकर बैठ जायें तो अन्य किसी व्यक्ति को जीने ही नहीं देगा। अत: लक्ष्मी जी की चंचलता ही उनका सबसे बड़ा गुण है। लक्ष्मी जी की एक ही खास बात है जो इनके पीछे पड़ा रहता है। इनके सपने देखता है। इनके पीछे-पीछे चलने का साहस करता है । दिन-रात एक कर देता है । दुनियां भले ही उनका मजाक करती रहे, लेकिन उनकी बिना परवाह किए लक्ष्मी जी के पीछे पड़े रहते हैं । उन्हीं पर कृपा दृष्टि होती है लक्ष्मी जी की। लक्ष्मी जी की पूजा के शुरू होने के सभी कारणों का विश्रेषण किया जाये तो अनुमान लगा सकते हैं कि राजाओं द्वारा अपनी मुद्राओं पर इन्हें चित्रित करवाये जाने के कारण ही जनता लक्ष्मी जी की पूजा करने लगी। दीपावली के आसपास ही धान की नई फसलें भी आ जाती हैं। अत: कह सकते हैं कि फसलों की कमाई आती है। अतः इसीलिए दीपावली पर धन की देवी लक्ष्मी जी के पूजन का रिवाज भी चल पड़ा।




[About Us] [Terms & Conditions] [Privacy Policy] [Pricing] [Refunds] [Contact Us]

कॉपीराइट 2003-2025 OnlineMandir.com | Powered by Classic Computer Point

Saptvar Katha

Aarti

Janamkundli

Panchang

Navdurga

Satyanarayan Katha

Shani Dev

Photo Gallery

Bajan Videos